एसपीपीयू (SPPU) में संकाय संकट गहराया, शोध और प्रशासनिक कार्य प्रभावित
पुणे स्थित सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय (SPPU) इस समय गंभीर संकाय संकट से जूझ रहा है। सरकार द्वारा स्वीकृत पदों में से लगभग 62% पद खाली हैं, जिसके कारण न केवल शोध कार्य बल्कि विश्वविद्यालय का प्रशासनिक ढांचा भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
विभिन्न विभागों पर संकट का असर
SPPU के कई विभागों में फैकल्टी की भारी कमी है। रिपोर्ट्स के अनुसार, नौ विभागों में सरकारी वित्त पोषित पदों पर एक भी प्रोफेसर मौजूद नहीं है। इनमें वायुमंडलीय अंतरिक्ष विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान, वाद्य विज्ञान और विज्ञान जैसे प्रमुख विभाग शामिल हैं।
मानविकी संकाय पर भी इस संकट का गहरा असर दिख रहा है। मानव विज्ञान, इतिहास, अंग्रेजी, समाजशास्त्र, संस्कृत और प्राकृत, तथा विदेशी भाषाओं जैसे विभागों में 75% से अधिक पद रिक्त हैं। वहीं मराठी विभाग में 71 प्रतिशत और पाली व बौद्ध अध्ययन विभाग में 67 प्रतिशत पद खाली हैं।
विज्ञान संकाय भी प्रभावित
केवल मानविकी ही नहीं, SPPU के विज्ञान विभाग भी फैकल्टी संकट से अछूते नहीं रहे हैं।
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जैव प्रौद्योगिकी विभाग में 83% पद खाली हैं, जहाँ छह में से केवल एक प्रोफेसर कार्यरत हैं।
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भौतिकी विभाग में 40 स्वीकृत पदों में से केवल 13 भरे गए हैं, यानी 68% पद रिक्त हैं।
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प्राणीशास्त्र विभाग में 67% और रसायनशास्त्र विभाग में 57% पद खाली पड़े हैं।
शोध और विद्यार्थियों पर प्रभाव
SPPU के शोध छात्र और स्नातक विद्यार्थी इस कमी से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। पर्याप्त प्रोफेसर न होने के कारण शोध प्रोजेक्ट्स में देरी हो रही है और छात्रों को गाइडेंस की कमी झेलनी पड़ रही है। साथ ही, प्रशासनिक कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं क्योंकि विभागों के पास आवश्यक अकादमिक नेतृत्व उपलब्ध नहीं है।
विशेषज्ञों की राय
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि SPPU जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में इस तरह का संकाय संकट शिक्षा की गुणवत्ता पर सीधा असर डाल सकता है। जब 60% से अधिक पद लंबे समय तक खाली रहते हैं, तो इससे न केवल छात्रों का भविष्य प्रभावित होता है बल्कि विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग भी गिर सकती है।
सरकार और विश्वविद्यालय से उम्मीदें
SPPU के शिक्षक संघों और छात्र संगठनों ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि रिक्त पदों को शीघ्र भरा जाए। उनका कहना है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में स्थिति और गंभीर हो सकती है।
SPPU में फैकल्टी की कमी ने शिक्षा और शोध कार्य दोनों को बाधित कर दिया है। यह जरूरी है कि सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन मिलकर शीघ्र समाधान निकाले ताकि SPPU की शैक्षणिक गुणवत्ता बरकरार रहे और विद्यार्थियों का भविष्य सुरक्षित हो सके।